सिया तेरा अभिशापित है राम-ये अतिसुंदर गीत को Priyanshu Gajendra जी के द्वारा लिखा एवं प्रस्तुत किया गया है। इस गीत मे प्रभू राम के द्रष्टिकोण को अहुत ही अलग तरीके से अभिव्यक्त किया गया है।
युग युग का संकल्प अटल था,मुझ मे मेरा राम प्रबल था
पग पग पर जिसकी मर्यादा,देकर थोड़ा ले गयी दे गयी ज्यादा
भोर नयन भर लायी आँसू,पीड़ा लायी शाम
सिया तेरा अभिशापित है राम
अग्निपरिक्षा जग का क्षल थी,पर जग के प्रशनो का हल थी
फिर भी उस पर प्रश्न उठा है,जो गंगा जैसी निर्मल थी
मैने घर से उसे निकाला,सागर जिसके लिये खंगाला
लंका जीतने वाला हारा,जीवन का संग्राम
सिया तेरा अभिशापित है राम
बोल रहा पौरुष की भाषा,मेरा राज कुंवर नन्हा सा
जो प्राणो से भी प्यारा है,आज वही प्राणो का प्यासा
मेरा साहस तोल रहा है,मानो मुझ से बोल रहा है
जननी की हर एक पीड़ा का,पाओगे परिणाम
सिया तेरा अभिशापित है राम
तात मुझे करके वनवासी,आप हुये गोलोक निवासी
मेरे राज कुंवर कुटिया मे,मै हुँ राज भवन का वासी
कहती रघुकुल रीति अभागे,अब तक प्राण नही क्यो त्यागे
धरती तुझको ठुकरा देगी,जल में है विश्राम
सिया तेरा अभिशापित है राम
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