Zahid Bashir – Nishast

Poetry Details:-

Zahid Bashir – Nishastइस पोस्ट मे कुछ शायरियाँ और गजल प्रस्तुत की गयी है जो कि Zahid Bashir के द्वारा लिखी एवं पेश की गयी है।

गुफ्तगु मे जब यहाँ पर मेरी बारी आयेगी
शोर बड़ जायेगा और आवाज थोड़ी आयेगी
तेरी बाहो के अलावा मै कहीं सोता नही
किसको घर से दूर रह कर नींद पूरी आयेगी


काश इस खेल मे तू मेरे बराबर आता
मै तुझे चूम कर मैदान से बाहेर आता
तुम बहुत पहले पलट आये मेरे सेहरा से
दश्त को पार जो करते तो समंदर आता


जो तेरे जैसा नही लग सकता,वो हमे अच्छा नही लग सकता
तूने दीवार जब खेंची है,कही दरवाजा नही लग सकता

 

क्या अजब लोग है घर वाले,अजब बोलते है
हम अगर वक्त पर पहुचे भी तो सब बोलते है
हम तेरे बाद भी खामोश रहा करते है
हम तेरे सामने बैठे भी तो कब बोलते है


तू अगर खुश है मेरे रोने मे,मै वहाँ बैठ जाँऊ कोने मे
देखते हो ये ईंट का तकिया,एक अरसा लगा भिगोने मे
जाग कर भी वही तुम्हारे ख्वाव,जागने मे मजा ना सोने मे

 

दिल पर प्यार की मोहर लगाकर भेजा है
देर से आज उसे हमने घर भेजा है
हम भी गाँव मे शाम को बैठा करते थे
हमको भी हालात ने बाहर भेजा है
वरना एक हजूम था दिल दरवाजे पर
तुमको सबसे पहले अंदर भेजा है
कल एक दोस्त को अपना हाल सुनाया था
उसने मुझे तुम्हारा नंबर भेजा है
सारी रात लगा कर उस पर नज्म लिखी
और उसने बस अच्छा लिख कर भेजा है


साथ चलने का भी सामान नही होता है
कैसा मुफलिस है परेशान नही होता है
मस्सला आपका ये है कि भरी महफिल मे
आप होते है मियां ध्यान नही होता है
बैन तो मर्द पर होता है हमारे यहा भी
इतना सज धज के मेरी जान नही होता है
ये रिवायत मेरे हुज्रे की रही है अब तक
दोस्त आ जाये तो मेहमान नही होता है


किसी भी शहर मे हो सब घरो का राब्ता था
हमी से टूट गया जो बड़ो का राब्ता था
किसी ने पूछा नही तुमसे मेरे बारे मे
तुम्हारे साथ तो सब दोस्तो का राब्ता था
उतरते जाते थे एक एक करके सिलसिला वार
कि जैसे तेग से सारे सरो का राब्ता था

 

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