Poetry Details:-
TEHZEEB HAFI WITH HIS LATEST GAZALS & NAZMS –इस पोस्ट में TEHZEEB HAFI की लिखी गयी कुछ गज़ले और शायरियाँ पेश की गयी है,जोकि TEHZEEB HAFI के द्वारा प्रस्तुत की गयी है।
उसके हाथो मे जो खंज़र है,ज्यादा तेज़ है
और फिर बचपन से ही उसका निशाना तेज़ है
जब कभी उस पार जाने का ख्याल आता मुझे
कोई आहिस्ता से कहता था कि दरिया तेज है
आज मिलना था बिछड़ जाने की नीयत से हमें
आज भी वो देर से पहुचा है कितना तेज है
अपना सब कुछ हार के लौट आये हो ना मेरे पास
मै तुम्हे कहता भी रहता था कि दुनिया तेज है
आज उसके गाल चूमे है तो अंदाजा हुआ
चाय अच्छी है मगर थोड़ा सा मीठा तेज है
जिंदगी भर फूल ही भिजवाओगे,या किसी दिन खुद भी मिलने आओगे
देहरे दारो से बचूगां कब तलक,दोस्त तुम एक दिन मुझे मरवाओगे
खुद को आईने कम देखा करो,एक दिन सूरजमुखी बन जाओगे
ये जो आईने में जो मुस्का रहा है ,मेरे ओंठो का दुख दोहरा रहा है
मेरी मर्जी मै उस पर जो लुटाऊ,तुम्हारी जेब से क्या जा रहा है
राते किसी याद मे कटती है ,और दिन दफ्तर खा जाता है
दिम जीने पर मायर होता है,तो मौत का डर खा जाता है
सच पूछो तो तहजीब हाफी मै ऐसे दोस्त शयाजिस हुँ
मिलता है तो बात नही करता और फोन पे सर खा जाता है
उसके चाहने वालो का आज उसकी गली मे धरना है
यही पे रुक जाओ तो ठीक है,आगे जाके मरना है
रुह किसी को सौंप आये हो तो ये जिस्म भी ले जाओ
वैसे भी मैने इस खाली बोतल का क्या करना है
आँख से आँसू दिल से दर्द मे डाने पर हैरत क्या
मुझे पता था उसने हर बर्तन कानो तक भरना है
तुझे भी खौफ था तेरी मुखालफत करुंगा मै
और अब अगर नही करुंगा तो गलत करुंगा मै
उसे कहो कि अहदे तरके रस्म और आह लिख कर दे
कलाई काट कर लहू से दस्खत करुंगा मै
मेरे नगो ने उस ज़बी को दाग दार कर दिया
गलत नही भी हुँ तो उससे माज़रत करुंगा मै
तुझे भी खौफ था तेरी मुखालफत करुंगा मै
और अब अगर नही करुंगा तो गलत करुंगा मै
करता नही ख्याल तेरा इस ख्याल से
तंग आ गया तू अगर मेरी देखभाल से
चल मेरे साथ और तबीयत की फिक्र छोड़
दो मील दूर है मेरा घर अस्पताल से
कदम रखता है जब रस्तो पे यार आहिस्ता आहिस्ता
तो छट जाता है सब गर्दो गुबार आहिस्ता आहिस्ता
भरी आँखो से होके दिल में जाना सहल थोड़ी है
चढे दरियाओ को करते है पार आहिस्ता आहिस्ता
नजर आता है तो युं देखता जाता हुँ मै उसको
के चल पडता है जैसे करोबार आहिस्ता आहिस्ता
तेरा पैकर खुदा ने भी तो फुरसत में बनाया था
बनायेगा तेरे जेवर सुनार आहिस्ता आहिस्ता
वो कहता है हमारे पास आओ पर सलीके से
जैसे आगे बढती है कतार आहिस्ता आहिस्ता
इधर कुछ औरते दरवाजे पर दौड़ी हुई आयी
उधर घोड़ो से उतरे शाह सवार आहिस्ता आहिस्ता
ये सोच कर मेरा सेहरा में जी नही लगता
मै शामिले सफे आवारगी नही लगता
कभी कभी वो खुदा बनके साथ चलता है
कभी कभी तो वो इंसान भी नही लगता
मै चाहता हुँ वो मेरी ज़बी पे बोसा दे
मगर जली हुई रोटी को घी नही लगता
मै उसके पास किसी काम से नही आता
उसे ये काम कोई काम ही नही लगता
पलट के आये तो सबसे पहले तुझे मिलेंगे
उसी जगह पर कई रास्ते मिलेंगे
अगर कभी तेरे नाम पर जंग हो गयी तो
हम ऐसे बुज़दिल भी पहले सफ में खड़े मिलेंगे
तुझे ये सड़के मेरे तबस्सुत से जानती है
तुझे हमेशा ये इशारे खुले मिलेंगे
हमें बदन और नसीब दोनो सवारने है
हम उसके माथे का प्यार लेकर गले मिलेंगे
ना जाने कब उसकी आँखे छलकेगी मेरे गम में
ना जाने किस दिन मुझे ये बर्तन भरे मिलेंगे
तू जिस तरह चूम कर हमें देखता है हाफी
हम एक दिन तेरे बाजुओ मे मरे मिलेंगे
हाँ,ये सच है कि मोहब्बत नही की
दोस्त बस मेरी तबीयत नही की
इसलिये गाँव में सैलाब आया
हमने दरियाओ की इज्जत नही की
जिस्म तक उसने मुझे सौंप दिया
दिल ने इस पर भी कनायत नही की
उसको देखा था अजब हालत में
फिर कभी उसकी हिफाजत नही की
याद भी याद से रखा उसको
भूल जाने मे भी गफलत नही की
हम अगर फतह हुये तो क्या
इश्क ने किस पर हुकुमत नही की
ये एक बात समझने में रात हो गयी है
मै उससे जीत गया हुँ के मात हो गयी है
मै अगले साल परिंदो का दिन मनाऊंगा
मेरी करीब के जंगल से बात हो गयी है
रहेगा याद मदीने से वापसी का सफर
मै हंद लिखने लगा था कि नात हो गयी है
तारीकियो को आग लगे और ये दिया जले
ये रात बैन करती र्हे और ये दिया जले
तुम चाहते हो कि तुम से बिछड़ कर भी खुश रहुँ
यानि हवा भी चलती रहे और दिया जले
उसकी ज़वा इतना असर है कि निस्फ शब
वो रोशनी की बात करे और दिया जले
क्या मुझ से भी अजीज है तुमको दिये की लौ
फिर तो मेरा मजार बने और दिया जले
मेरे जख्म नही भरते यारो मेरे नाखून बड़ते जाते है
मै तन्हा पेड़ हु जंगल का,मेरे पत्ते झड़ते जाते है
मै कौन हुँ ,मै क्या हुँ,कब की हुँ,इक तेरी कब हुँ सबकी हुँ
मुझे ताब नही है छांव की,मै कोयल हुँ सेहराओ की
इक दलदल है तेरी यादो की,मेरे पैर उखड़ते जाते है
मेरे जख्म नही भरते यारो मेरे नाखून बड़ते जाते है
मै किस पिंजरे की चिड़िया थी ,मै किस बच्चे की गुड़िया थी
मुझे खेलने वाले कहाँ गये,मुझे चूमने वाले कहाँ गये
मेरे झुमके गिरवी मत रखना,मेरे कंगन तोड़ ना देना
मै बंजर होती जाती हुँ कहीं,दारिया मोड़ ना देना
कभी मिलना इस पर सोचेंगे,हम क्या मंजिल पर पहुचेगें
रस्ते मे ही लड़ते जाते है
मेरे जख्म नही भरते यारो मेरे नाखून बड़ते जाते है
बस यही सोच कर उम्र भर हमने पांव में जूते नही पहने
जाने कब किस तरफ तेरी आवाज के दफ बजे और हम देर कर दे
हम तेरे संत निकले तो अपने बनाये हुये दायरो के
तकद्दुस को पामाल करते हुये एक लम्हा ना सोचा
इतना आसान नही है अपनी बस्ती से हिज़रत मेरी जां
शहर जाते हुये गाड़ीयाँ गाँव में बच गये उन बुजुर्गो
को हार्न नही गालिया दे के गुजरी
कितने दिन हो गये तेरी जुल्फो के साये मे आये हुये
फिर भी कोई खला है जिसे तेरी मौजुदगी भी नही उभर सकी
जिंदगी तेरी होंठो से बहती हुई हँसी से बहुत मुख्तलफ है
जिंदगी ऐसी तस्वीर है जिसको नजदीक से देखने के लिये
दूर की ऐनके चाहिये,जिन जवां लड़्कियो के बुढापे का सोचा नही था
आज उनके लबो ,भवो और बालो मे भी बर्फ है
तू नही जानती वक्त भी अपनी फितरत मे कमज़र्फ है
इससे पेहले के अंदर से आवाज आये के अब मुझ पे हर रास्ता बंद है
आ मेरे पास आ ,मेरे सीने पे सर रख,कुछ जगहो पर रगो मे धड़कते हुए
खून का ठहर जाना बहुत फायदामंद है