Poetry Details:-
Kaash Tum Ajnabi Rehte to Achaa Hota -काश तुम अजनबी रेहते तो अच्छा होता-इस कविता को लिखा और प्रस्तुत Amit Nainawat ने किया है,इस पोस्ट मे कविता के अलावा कुछ शेर भी सम्मिलित है,यह Wordsutra यु टयुब चैनल पर प्रदर्श्ति किया गया है।
मै ख्वावो मे खोया था तेरे
तू भी मेरे सपनो मे खोयी थी क्या??
और ये जो मोहब्बत-२ करती फिरती हो
तुम्हे सच मे मोहब्बत हुई थी क्या ??
इस खत के जरिये तुम्हे एक फरमान केहते है
हाँ,तुम्हे अब हम बेइमान केहते है
यु तो कोई जान ले ना सका हमारी
और जो जान ले कर गया हमारी
हम उसी को जान केहते है
जिदगी अपनी खुली किताब करली थी
हमसे खता ये हुई कि तुम से मोहब्बत
बेहिसाब कर ली थी
वक्त पर साबित कर दिया करो
बाद मे कोई एतबार नही करता
जो दिल से खुबसूरत ना हो
उसे कोई प्यार नही करता
ये मोहब्बत का काफिला है
यहा हाथ थामे चला करो
जो हाथ छुट जाये
तो कोई इंतजार नही करता
काश तुम कुछ ना केहते तो अच्छा होता
हम जज्बातो मे ना बेहते तो अच्छा होता
काश ये दिल तुम पे आया ही ना होता
काश तुम अजनबी रेहते तो अच्छा होता
काश हुम एक दूजे को पसंद ही ना आये होते
वो साथ रेहने के सपने ना सजाये होते
ना मै शेर पढता तुम्हारी खुबसूरती पर
और ना ही तेरे नाम के हर्फ मैने दिल मे बसाये होते
‘तुम’ मे तुम ‘हम’ मे हम ही रेहते तो अच्छा होता
काश तुम्हारे दिल मे नवी रेहते तो अच्छा होता
जाने क्यो खुद ज्यादा जान लिया तुम्हे
काश तुम अजनबी रेहते तो अच्छा होता
काश वो रेशमी जुल्फे तुम्हारी हवा मे ना उडी होती
काश उस दिन हवा ही ना चली होती
काश तुमने वो मेरा पेहला काँल ना उ्ठाया होता
काश उस रोज मेरे फोन मे नेट्वर्क ही ना आया होता
तुम हम से दूर ही रेहते तो अच्छा होता
तुम बेकसुर ही रेहते तो अच्छा होता
याद किया है इस कदर कि भुलाये नही भुलते हो
काश तुम अजनबी रेहते तो अच्छा होता
काश तुम मेरे घर ना आयी होती
काश मैने तुम्हे चाय ना पिलाई होती
लोग मिलाते है शक्कर उसमे
काश मैने उसमे मोहब्बत ना मिलायी होती
उस रोज तुम अपने घर ही रेहते तो अच्छा होता
मेरी बचपन की तस्वीर देख मुझे ‘चीकू’ ना केहते तो अच्छा होता
तुम से अलग हम भी खुद को पेहचान नही पा रहे है
काश तुम अजनबी रेहते तो अच्छा होता
काश तुमने वो सडक किनारे मेरा हाथ ना पकडा होता
काश तुमने अपनी झूठी मोहब्बत मे मुझे ना जकड़ा होता
अगर तुमने हमे पेहले ही सब सच्चाई बता दी होती
तो ना ये आखे नम होती,ना ये रोने धोने का लफड़ा होता
उस सड़क पर तुम अकेले ही चलते तो अच्छा होता
इन नन्ही आखो मे सपने ना पलते तो अच्छा होता
गुस्सा आता है खुद पे कि क्यो तुम से मुलाकात की
काश तुम अजनबी रेहते तो अच्छा होता
उस पुराने पीपल कि लेने छांव जा रहा हु
थोड़ा जल्दी मे हुँ, नंगे पांव जा रहा हु
ये मोटर गाडी बंगले सब तुम रख लो
माँ,अकेली है, मै गाँव जा रहा हु