यह कहना था उनसे…मौहब्बत है मुझको-Khumar Barabankvi

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यह कहना था उनसे…मौहब्बत है मुझको-Khumar Barabankvi-इस पोस्ट में Khumar Barabankvi की लिखी गयी कुछ गज़ले और शायरियाँ पेश की गयी है,जोकि Khumar Barabankvi के द्वारा प्रस्तुत की गयी है।

आँखो के चिरागो मे,उजाले ना रहेंगे
आ जाओ के फिर देखने वाले ना रहेंगे

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अब आँसू संभलते नही है संभाले
तुम्हारी अमानत तुम्हारे हवाले

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मुझको शिकस्त-ए-दिल का मजा याद आ गया
तुम क्यो उदास हो गये क्या याद आ गया
कहने को जिंदगी थी बहुत मुख्तसर मगर
कुछ युं बसर हुई के खुदा याद आ गया
बरसे बगैर ही जो घटा घिर के खुल गयी
एक बेवफा का अहदे वफा याद आ गया
मांगेगे अब दुआ के उसे भूल जाये हम
लेकिन वो जो बवक्ते दुआ याद आ गया
हैरत है तुमको देखके मस्जिद मे है खुमार
क्या बात हो गयी जो खुदा याद आ गया

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वही फिर मुझे याद आने लगे है
जिन्हे भूलने मे जमाने लगे है
वो है पास और याद आने लगे है
मोहब्बत के होश अब ठिकाने लगे है
सुना है हमे वो भुलाने लगे है
तो क्या हम उन्हे याद लगे है
हटाये थे जो राह से दोस्तो की
वो पत्थर मेरे घर मे आने लगे है
ये कहना था उनसे मोहबब्त है मुझको
ये कहने मे मुझको जमाने लगे है
कयामत यकीनन करीब आ गयी है
‘कुमार’ अब तो मस्जिद मे जाने लगे है

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हुस्न जब मेहरबां हो तो क्या कीजिए
इश्क की मगफिरत की दुआ कीजिये
इस सलीके से उनसे गिला कीजिये
जब गिला कीजिये हँस दिया कीजिये
दूसरो पर अगर तब्सिरा कीजिये
सामने आईना रख लिया कीजिये
आप सुख से है करके ताल्लुक के बाद
इतनी जल्दी ना ये फैसला कीजिये
कोई धोखा ना खा जाये मेरी तरह
ऐसे खुलके ना सब से मिला कीजिये

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कभी शेरो नग्मा बनके,कभी आंसुओ मे ढलके
वो मुझे मिले तो लेकिन मिले सूरते बदल के
ये वफा की सख्त राहे,ये तुम्हरे पाय नाजुक
ना लो इंतकाम मुझसे मेरे साथ साथ चलके
ना तो होश से तार्रूफ,ना जुनू से आशनायी
ये कहाँ पहु्च गये हम तेरी बज़्म से निकलके

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