मर जाये अभी मर के मना ले तुमको-ANDAAZ E BAYAAN AUR – DUBAI-WASI SHAH

Poetry Details:-

मर जाये अभी मर के मना ले तुमको-ANDAAZ E BAYAAN AUR – DUBAI 2019-इस पोस्ट में WASI SHAH की लिखी गयी कुछ गज़ले और शायरियाँ पेश की गयी है,जोकि WASI SHAH के द्वारा प्रस्तुत की गयी है।

 

अंधेरी रात मे रहते तो कितना अच्छा था
हम अपनी जात मे रहते तो कितना अच्छा था
दुखो ने बाँट लिया है तुम्हारे बाद हमें
तुम्हारे हाथ मे रहते तो कितना अच्छा था
-*-

मसले माना मेरी ज़ात मे थे
हल मगर उसके तेरे हाथ मे थे
तूने झुल्फे जो खोल दी तो खुले
भेद जितने भी कायनात मे थे
-*-

मेरे मुँह मे जुबान है ही नही
जाओ कोई बयान है ही नही
रूह से रूह का मिलाप है ये
जिस्म तो दरमियान है ही नही
दोस्ता तीर उधर से आयेगा
जिस तरफ तेरा ध्यान है ही नही
ये तो चलती नजर नही आती
इस मोहब्बत मे जान है ही नही
-*-

कल हमेशा की तरह उसने कहा ये फोन पर
मै बहुत मशरूफ़ हुँ,मुझको बहुत से काम है
इसलिये तुम आओ मिलने,मै तो आ सकती नही
हर रिवायत तोड़ कर,इस बार मैने कह दिया
तुम जो हो मशरूफ तो,मै भी बहुत मशरूफ हुँ
तुम जो हो मशहूर तो,मै भी बहुत मारूफ़ हुँ
तुम अगर ग़मगीन हो,मै भी बहुत रंज़ूर हुँ
तुम थकन से चूर तो,मै भी थकन से चूर हुँ
जानेमन है वक्त मेरा भी बहुत ही कीमती
कुछ पुराने दोस्तो को मिलने आना है अभी
मै भी अब फ़ारिग़ नही,मुझको भी लाखो काम है
वरना कहनो को सब लम्हे तुम्हारे नाम है
मेरी आँखे भी बहुत बोझल है,सोना है मुझे
रतजगो के बाद अब नींदो मे खोना है मुझे
मै लहू अपनी अनाओ का बहा सकता नही
तुम नही आती तो मिलने, मै भी आ सकता नही
उसको ये कहके ‘वसी’ मैने रिसीवर रख दिया
और फिर अपनी अना के पाँव पर सर रख दिया
-*-

उसकी आँखो मे मोहब्बत का सितारा होगा
एक दिन आयेगा वो शख्स हमारा होगा
जिंदगी अबके मेरा नाम ना शामिल करना
ग़्रर ये तय है कि यही खेल दोबारा होगा
जिसके होने से मेरी साँस चला करती थी
किस तरह उसके बगैर अपना गुजारा होगा
ये जो पानी मे चला आया सुनहरी सा गुरूर
उसने दरिया मे कहीं पाँव उतारा होगा
-*-

होशियारी दिल-ए-नादान बहुत करता है
रंज कम सहता है,एलान बहुत करता है
-*-

दिल-ए-मक्कार को मक्कार पुकारा जाये
क्युं ना गद्दार को गद्दार पुकारा जाये
इसलिये भी कोई त्र्याक नही हमने पिया
हमको हर दम तेरा बीमार पुकारा जाये
हमने माना कि कहाँ लौटती है उम्र ए रवां
दिल के बहलाने को एक बार पुकारा जाये
जिसकी मुठ्ठी मे मोहब्बत के पड़े हो सिक्के
ऐसे मुफ़लिस को तो ज़रदार पुकारा जाये
फूल सा महकेगा चमकेगा वो जुगनू की तरह
चाहे जिस नाम से वो यार पुकारा जाये
मै ही हर बार कबीले के लिये दार चड़ू
मेरा नाम ही हर बार पुकारा जाये
इससे मज़लूम की तौहीन हुआ करती है
कभी कातिल को ना दिलदार पुकारा जाये
भीख मे दे दे जो मय के लिये जोड़े सिक्के
ऐसे मयकश को तो दींदार पुकारा जाये
हर फि तनकीद इलाज-ए- दिले बीमार भी है
हर मुखालिफ़ को ना गद्दार पुकारा जाये
फिर तो सदिया उसे सीने से लगाती है ‘वसी’
जो तेरे नाम से एक बार पुकारा जाये
-*-

आँखो से मेरे इसलिये लाली नही जाती
यादो से कोई रात जो खाली नही जाती
अब उम्र ना मौसम ना वो रस्ते के वो पलटे
इस दिल की मगर खाम ख्याली नही जाती
आये कोई आकर ये तेरे दर्द सम्हाले
हम से तो ये जागीर संभाली नही जाती
मांगे तू अगर जान भी हँस के तुझे दे दे
तेरी तो कोई बात भी टाली नही जाती
मालूम हमे भी है बहुत से तेरे किस्से
पर बात तेरी हमसे उछाली नही जाती
हम जान से जायेगे,तभी बात बनेगी
तुमसे तो कोई राह निकाली नही जाती
-*-

बांध ले हाथ पे सीने पे सजा ले तुमको
जी मे आता है के ताबीज़ बना ले तुमको
फिर तुम्हे रोज़ संवारे,तुम्हे बढ़ता देखे
क्यो ना आँगन मे चमेली सा लगा ले तुमको
क्या अजब ख्वाहिशे उठती है हमारे दिल मे
करके मुन्ना सा हवाओ मे उछाले तुमको
इस कदर टूट के तुम पे हमे प्यार आता है
अपनी बाँहो मे भरे मार ही डाले तुमको
जान देने की इजाजत भी नही देते हो
वरना मर जाये अभी मर के मना ले तुमको

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