बरसो पुराना दोस्त मिला,जैसे गैर हो- UMAIR NAJMI

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बरसो पुराना दोस्त मिला,जैसे गैर हो-इस पोस्ट मे कुछ गजल,शेर और मतले पेश किये गये है जिन्हे UMAIR NAJMI जी ने लिखा और प्रस्तुत किया है।

मुझे पेहले पहल लगता था ज्याती मसला है
मै फिर समझा मोहब्बत कानायती मसला है
परिंदे कैद है तुम चहचहाट चाहते हो
तुम्हे तो अच्छा खासा नफसियाती मसला है
हमे पूरा जुनून दरकार है उस पर सुकून भी
हमारी नस्ल मे इक जीनियाती मसला है


एक तारीखे मुकर्र पर तू हर माह मिले
जैसे दफ्तर मे किसी शख्स को तनखाह मिले
रंग उखड़ जाये तो जाहिर हो प्लसतर की नमी
कहकहा खोद के देखो तो तुम्हे आह मिले
जमा थे रात मेरे घर तेरे ठुकराये हुये
एक दरगाह पे सब रांदाये दरगाह मिले
मै तो एक आम सिपाही था हिफाजत के लिये
शाहजादी ये तेरा हक था तुझे शाह मिले
एक मुलाकात के टलने की खबर ऐसे लगी
जैसे मजदूर को हड़ताल की अफवाह मिले


नकाब उड़ा तो मुझे सुर्ख लब दिखाई दिये
वो दो दिये जो हवा के सबब दिखाई दिये
मै जुस्बी अंधा था दो चार रंग दिखते थे
मगर जब उसने कहा देख सब दिखाई दिये
किसी के साथ किसी बाग मे टहलते हुये
तमाम फूल बहुत बाअदब दिखाई दिये


बरसो पुराना दोस्त मिला,जैसे गैर हो
देखा,रुका,झिझक के कहा तुम उमैर हो?
मिलते है मुश्किलो से यहाँ हम ख्याल लोग
तेरे तमाम चाहने वालो की खैर हो
हम मुतमईन बहुत है अगर खुश नही भी है
तुम खुश हो क्या हुआ जो हमारे बगैर हो
कमरे मे सिगरेटो का धुंआ और तेरी महक
जैसे शदीद धुंध में बागो की सैर हो
पैरो मे उसके सर को धरे इल्तिजा करे
इक इल्तिजा के जिसका ना सर हो ना पैर हो


बड़े तहम्मुल से रफ्ता रफ्ता निकालना है
बचा है तुझमे जो मेरा हिस्सा निकालना है
ये रुह बरसो से दफ्न है तुम मदद करोगे?
बदन के मलबे से इसको जिंदा निकालना है
नजर मे रखना कहीं कोई गमशनाश गाहक
मुझे सुखन बेचना है,खर्चा निकालना है
निकाल लाया हुँ,एक पिंजरे से एक परिंदा
अब इस परिंदे के दिल से पिंजरा निकालना है
मै इक किरदार से बड़ा तंग हुँ कलमकार
मुझे कहानी मे डाल गुस्सा निकालना है
झुक के चलता हुँ के कद उसके बराबर ना लगे
दूसरा ये के उसे राह मे ठोकर ना लगे
ये तेरे साथ ताल्लुक का बड़ा फायदा है
आदमी हो भी तो औकात से बाहर ना लगे
नीम तारीक सा माहोल दरकार है मुझे
ऐसा माहोल जहाँ आँख लगे डर ना लगे
माँओ ने चुमना होते है बुरीदा सर भी
उनसे कहना के कोई जख्म जबीं पर ना लगे
तुमने छोड़ा तो किसी और से टकराऊंगा मै
कैसे मुमकिन है के अंधे का कही सर ना लगे
बस एक उसी पे तो पूरी तरह अयाँ हुँ मै
वो कह रहा है मुझे रायगाँ तो हाँ हुँ मै
जिसे दिखाई दू मेरे तरफ इशारा करे
मुझे दिखाई नही दे रहा कहा हुँ मै
किसी ने पूछा कि तुम कौन हो?
तो भूल गया अभी किसी ने बताया तो था कि फलां हुँ मै
मै खुद को तुझ से मिटाऊँगा एहतियात के साथ
तू बस निशान लगा दे जहाँ जहाँ हुँ मै
मै किससे पूछू ये रस्ता दुरुस्त है के गलत?
जहाँ से कोई गुजरता नही वहाँ हुँ मै


इस खराबे मे कुछ आगे वो जगह आती है
जहा ख्वाव भी टूटे तो सदा आती है
मैने जिंदान मे सीखा था असीरो से ऐ किस्म
जिसको दीवार पे फूंके तो हवा आती है
उसको पर्दे का तरद्दुद नही करना पड़ता
ऐसा चेहरा है के देखे तो हया आती है


जहान भर की तमाम आँखे निचोड़ कर जितना नम बनेगा
ये कुल मिलाकर भी हिज्र की रात मेरे गिरिये से कम बनेगा
हमारा लाशा बहाव वरना लहद मुकद्दस मजार होगी
ये सुर्ख कुर्ता जलाओ वरना बगावतो का अलम बनेगा
मै तरतीब से लगाता रहा हुँ अब तक सुकूत अपना
सदा के वक्फे निकाल इसको शुरु से सुन रिदम बनेगा
सुफेद रुमाल जब कबूतर नही बना तो वो शोब्दाबाज
पलटने वालो से कह रहा था रुको खुदा की कसम बनेगा

 

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