बदल गये मेरे मौसम,तो यार अब आये Farhat Abbas Shah,-जश्‍न-ए-पीरज़ादा क़ासिम

बदल गये मेरे मौसम,तो यार अब आये Farhat Abbas Shah,-जश्‍न-ए-पीरज़ादा क़ासिम-इस पोस्ट में Farhat Abbas Shah की लिखी गयी कुछ गज़ले और शायरियाँ पेश की गयी है,जोकि Farhat Abbas Shah के द्वारा प्रस्तुत की गयी है।

बदल गये मेरे मौसम,तो यार अब आये

गमो ने चाट लिया,गम गुसार अब आये

ये वक्त इस तरह रोने का तो नही लेकिन

मै क्या करूं के मेरे सौ गंवार अब आये


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आग हो तो जलने मे देर कितनी लगती है

बर्फ के पिघलने मे देर कितनी लगती है 

चाहे कोई रुक जाये चाहे कोई रह जाये

काफिलो को चलने मे देर कितनी लगती है

चाहे कोई जैसा भी हमसफर हो सदियो से

रास्ता बदलने मे देर कितनी लगती है

ये तो वक्त के बस में है के कितनी मोहलत दे

वरना वक्त ढलने मे देर कितनी लगती है


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कही से दुख तो, कही से घुटन उठा लाये

कहाँ कहाँ से ना दिवानापन उठा लाये

अजीब ख्वाब था देखा के दर बदर होके

हम अपने मुल्क से ,अपना वतन उठा लाये


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ये दिल मलूल* भी कम है,उदास भी कम है

कई दिनो से कोई आस पास भी कम है

हमे भी युंही गुजरना पसंद है और फिर

तुम्हारा शहर मुसाफिर शनास* भी कम है 


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इसी से होता है जाहिर जो हाल दर्द का है

सभी को कोई ना कोई बबाल दर्द का है

सहर सिसकते हुये आसमान से उतरी

तो दिल ने जान लिया ये बिसाल दर्द का है

ये झाँक लेती है दिल से जो दूसरे दिल मे

मेरी निगाह मे सारा कमाल दर्द का है

अब इसके बाद कोई राब्ता नही रखना

ये बात तय हुई लेकिन सवाल दर्द का है

ये दिल, ये उजडी हुई चश्मे नम*,ये तन्हाई

हमारे पास तो जो भी है माल दर्द का है 

ना तुम मे सुख की कोई बात है ,ना मुझ मे है

तुम्हारा और मेरा मिलना बिसाल दर्द का है 

यही कहीं मेरे अंदर कोई तड़पता है 

यही कही पे कोई यर्ग़माल दर्द का है

किसी ने पूछा के ‘फरहत’ बहुत हसीन हो तुम

तो मुस्कुरा के कहा सब जमाल दर्द का है

ये इश्क है,इसे तीमारदारियाँ कैसी?

इसे ना पूछ ये बूढा निढाल दर्द का है

हम इसको देखते जाते है,रोते जाते है

ये शहने शब पे पड़ा है जो थाल दर्द का है

असीर है मेरी शाखे नसीब पतझड़ मे

मेरे परिंदा -ए-दिल पर भी जाल दर्द का है

सुना है तेरे नगर जा बसा है बेचारा

सुनाओ कैसा वहाँ हाल चाल दर्द का है

किसी ने पूछा के ‘फरहत’ बहुत हसीन हो तुम

तो मुस्कुरा के कहा सब जमाल दर्द का है


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समय जैसे गुजरता जा रहा है 

कोई दिल से उतरता जा रहा है

बना था रेतली मट्टी से जीवन

बिखरता ही बिखरता जा रहा है

बिछे है जख्म मेरे फूल बन कर

जमाना पांव धरता जा रहा है

वो काजल है या आंसू या कोई ग़म

मेरी आँखो मे भरता जा रहा है

मुसाफिर दिल तेरी खामोशियो में

बहुत तन्हा है,डरता जा रहा है 


अर्थः-शनास*-पहचानने वाला,मलूल*-दुखी,बिसाल*-मिलन,चश्मे नम*-अधखुली आँख,यर्ग़माल*-बंधक,असीर*-बंदी

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