फिर भींगो के तकिया रोई हूँ -Ayushi Rakhecha

Poetry Details:-

फिर भींगो के तकिया रोई हूँ –इस पोस्ट मे मे कुछ कविता की पंक्तियाँ और एक बहुत ही सुंदर गीत सम्मिलित किया है जो कि Ayushi Rakhecha जी ने लिखा एवं प्रस्तुत किया है,इन कविताओ मे श्रंगार रस का अभिक प्रयोग किया गया है।

गुल मोहर की गुल सी हूँ,इक गुल की बुलबुल सी हूँ
काशमीर की नर्म बरफ या ढाका की मलमल सी हूँ
बाबुल तेरे आंगन की इक गुड़िया चंचल सी हूँ
मन भावन अमराई भी पावन तुलसी दल सी हूँ

तारिणि तू धारिणि तू भव भय हारिणि तू अष्टसिद्धि कारिणि प्रकाश कर दो ना माँ
घोर काली माँ के ये घने घने घने रे मेघ काट छांट उजला आकाश कर दो ना माँ
काली काली कलि के तु काले कुंतलो खोल तम हर कष्ट पाश नाश कर दो ना माँ
ऐसे चंड मुंड और शुंभ का निशुंभ का भवानी के स्वरूप मे विनाश कर दो ना माँ

साजन ने इक खत भेजा है, अक्षर अक्षर प्यार लिखा
चंचल,चितवन,कोमल,यौवन मुझे कली कचनार लिखा
खंजन नैनो के अंजन को उसने प्रेम कटार लिखा
चंचल,चितवन,कोमल,यौवन मुझे कली कचनार लिखा
लिखा है खत है कोरा कागज प्रेम की स्याही मिला रहा
पंक्ति पंक्ति भाव संजो कर मादक मदिरा पिला रहा
मै हूँ व्याकुल तुम कैसी हो?मुझको अपना हाल लिखो
क्या झुमके ने दिया उलाहना?पायल की हड़ताल लिखो
प्रणय हमारा थाल आरती मिलन को मंगलाचार लिखा
चंचल,चितवन,कोमल,यौवन मुझे कली कचनार लिखा
तुम बिन जीवन जेठ दुपहरी अंतस मे यह शोर हुआ
रात स्वपन मे जब तुम आयी भादो मे घनघोर हुआ
लटो को चूमा बांहो मे झूमा आँख खुली तुम पास नही
करवट बदल के रात गुजारी क्या तुम को आभास नही
देख के इक तस्वीर पुरानी मुझको सोलाह पार लिखा
चंचल,चितवन,कोमल,यौवन मुझे कली कचनार लिखा
खत मे भेजा है गुलमोहर महका महका खिला हुआ
यह प्रसून का रंग सुनहरा सुर्ख लवो से मिला हुआ
खत पढकर रखा सिरहाने रात जगी ना सोई हुँ
कौन प्रहर ना नैन बहे फिर भिगो के तकिया रोई हुँ
इक चुंबन की चाह को उसने खत मे युं सौ बार लिखा
चंचल,चितवन,कोमल,यौवन मुझे कली कचनार लिखा
प्यार लिखा संसार लिखा

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