Poetry Details:-
देह वनवास –इस पोस्ट में दो गीत प्रस्तुत किये गये है जो की Aman Akshar के द्वारा लिखे एवं पेश किये गये है।
देह वनवास को सौंप कर वो चला
चित्त घर की दिशा शेष जाने किधर
इक पराजय यदि आयु भर साथ हो
हर घड़ी हर्ष ये ना निभा पायेगा
अपना जीवन है मंचन के जैसा अगर
हमको जीने का अभिनय नही आयेगा
जब स्वयं का ही अधिकार कर ना सके
प्राण सीमित हुये साँस विन्यास पर
देह वनवास को सौंप कर वो चला
चित्त घर की दिशा शेष जाने किधर
कुछ वचन युं अधूरे संजोये रहे
अश्रूपूरित समापन हो संसार का
इक ईकाई है मन बस यही मानकर
हम भी सथिया बने दर्द के द्वार का
आस अंतिम यही स्वर अबोले रहे
गीत कोई कभी नही हो मुखर
देह वनवास को सौंप कर वो चला
चित्त घर की दिशा शेष जाने किधर
मंत्रणा कोई भी ना सफल हो सकी
प्रीत को तो समर मे उतरना ही था
हारना प्रेम में सब अमर कर गया
जीत जाता प्रणय फिर तो मरना ही था
हार को साँस हर दम संभाले हुये
पास रहता नही युं कोई जीत कर
देह वनवास को सौंप कर वो चला
चित्त घर की दिशा शेष जाने किधर
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चंचल मन ये जीता जिसने तुम मे ऐसा कोई है
एक तुम्हारे पीछे हमने अपनी सुध बुध खोई है
बस्ती बस्ती गीत लिये हम अपनी बाते कहते है
कुछ गीतो की नैया ले हम,अपनी नदिया गेहते है
मन जब तुमसा होकर अक्सर,हमसे झगड़ा करता है
तब लगता है मन भीतर सब लोग तुम्हारे रहते है
अपनी होनी अनहोनी भी इक ही साँस पिरोई है
एक तुम्हारे पीछे हमने अपनी सुध बुध खोई है
भावुकता का सूरज निशदिन चड़ता और उतरता है
याद का चंदा नियमित आकर ठंडी आहे भरता है
जीवन तुम तक सीमित होकर पूरी दुनिया जैसा है
तुमसे बाहर आकर अपनी छाया से भी डरता है
प्यार की दुनिया मे ही हमने अपनी दुनिया बोई है
एक तुम्हारे पीछे हमने अपनी सुध बुध खोई है
किसी कल्पना लोक मे बीते वो जीवन ही अच्छा है
इन तर्को वाली दुनिया से प्रेमी मन ही अच्छा है
आस का हर पत्ता आखिर जब उस डाली से टूट गया
युं लगता है प्रियतम अपना खालीपन ही अच्छा है
मन बैठी इक लडकी अक्सर ऐसा सुनकर रोई है
एक तुम्हारे पीछे हमने अपनी सुध बुध खोई है