Poetry Deatils-
दुख फ़साना नहीं कि तुझ से कहें-इस पोस्ट में AHMAD FARAZ जी की लिखी हुई कुछ गज़ले पेश की गयी है,जो कि उन्ही के द्वारा प्रस्तुत की गयी है,इस पोस्ट मे दुबई मे हुये Jashn-E-Jagannath Azaad मुशायरे मे कही गयी गज़ले शामिल की गयी है।
उस ने सुकूत-ए-शब में भी अपना पयाम रख दिया
हिज्र की रात बाम पर माह-ए-तमाम रख दिया
आमद-ए-दोस्त की नवीद कू-ए-वफ़ा में गर्म थी
मैं ने भी इक चराग़ सा दिल सर-ए-शाम रख दिया
शिद्दत-ए-तिश्नगी में भी ग़ैरत-ए-मय-कशी रही
उस ने जो फेर ली नज़र मैंने भी जाम रख दिया
उस ने नज़र नज़र में ही ऐसे भले सुख़न कहे
मैंने तो उस के पाँव में सारा कलाम रख दिया
देखो वो मेरे ख़्वाब थे देखो ये मेरे ज़ख़्म हैं
मैंने तो सब हिसाब-ए-जाँ बर-सर-ए-आम रख दिया
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अब के बहार ने भी कीं ऐसी शरारतें कि बस
कब्क-ए-दरी की चाल में तेरा ख़िराम रख दिया
और ‘फ़राज़’ चाहिएँ कितनी मोहब्बतें तुझे
माओं ने तेरे नाम पर बच्चों का नाम रख दिया
उस ने सुकूत-ए-शब में भी अपना पयाम रख दिया
हिज्र की रात बाम पर माह-ए-तमाम रख दिया
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दुख फ़साना नहीं कि तुझ से कहें
दिल भी माना नहीं कि तुझ से कहें
आज तक अपनी बेकली का सबब
ख़ुद भी जाना नहीं कि तुझ से कहें
एक तू हर्फ़-ए-आश्ना था मगर
अब ज़माना नहीं कि तुझ से कहें
बे-तरह हाल-ए-दिल है और तुझ से
दोस्ताना नहीं कि तुझ से कहें
ऐ ख़ुदा दर्द-ए-दिल है बख़्शिश-ए-दोस्त
आब-ओ-दाना नहीं कि तुझ से कहें
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चलो वो इश्क़ नहीं चाहने की आदत है
कि क्या करें हमें दू्सरे की आदत है
तू अपनी शीशा-गरी का हुनर न कर ज़ाया
मैं आईना हूँ मुझे टूटने की आदत है
मैं क्या कहूँ के मुझे सब्र क्यूँ नहीं आता
मैं क्या करूँ के तुझे देखने की आदत है
विसाल में भी वो ही फासले फिराक के है
कि उसको नींद मुझे रत-जगे की आदत है
ये ख़ुद-अज़ियती कब तक “फ़राज़” तू भी उसे
न याद कर कि जिसे भूलने की आदत है
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सिलसिले तोड़ गया वो सभी जाते जाते
वर्ना इतने तो मरासिम थे कि आते जाते
शिकवा-ए-ज़ुल्मत-ए-शब से तो कहीं बेहतर था
अपने हिस्से की कोई शंमा जलाते जाते
कितना आसाँ था तेरे हिज्र में मरना जानाँ
फिर भी इक उम्र लगी जान से जाते जाते
जश्न-ए-मक़्तल ही न बरपा हुआ वर्ना हम भी
पा-ब-जौलाँ ही सही नाचते गाते जाते
उस की वो जाने उसे पास-ए-वफ़ा था कि न था
तुम ‘फ़राज़’ अपनी तरफ़ से तो निभाते जाते
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तू ना चाहे तो नही हुँ,तू जो चाहे तो मै हूँ
मेरी औकात ही क्या है?,परे काहे तो मै हुँ
तेरे गम ने मेरी हस्ती की जमानत दी थी
तू अगर अपने ताल्लुक को निभाये तो मै हुँ
दिल ने कब शेब-ए-दरयुज़ गरी तर्क किया
तेरे दर पर ना हुआ मै सरे राहे तो मै हुँ