तेरे बगैर ही अच्छे थे,क्या मुसीबत है-MAHSHAR AFRIDI-इस पोस्ट में MAHSHAR AFRIDI की लिखी गयी कुछ गज़ले और शायरियाँ पेश की गयी है,जोकि MAHSHAR AFRIDI के द्वारा प्रस्तुत की गयी है।
दबी कुचली हुई सब ख्वाहिशो के सर निकल आये
जरा पैसा हुआ तो च्युटी के पर निकल आये
अभी उड़ते नही तो फाक्ता के साथ है बच्चे
अकेला छोड़ देंगे माँ को जिस दिन पर निकल आये
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जगह की कैद नही थी, कोई कही बैठे
जहाँ मकाम हमारा था,हम वही बैठे
अमीर-ए-शहर के आने पे उठना पड़ता है
लिहाजा अगली शफो मे कभी नही बैठे
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सबसे बेज़ार हो गया हुँ मै
ज़ेहनी बीमार हो गया हुँ मै
कोई अच्छी खबर नही मुझमें
यानि अखबार हो गया हुँ मै
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मै ना कहता था हिज्र कुछ भी नही
खुद को हलकान कर रही थी तुम
कितने आराम से है हम दोनो
देखा बेकार डर रही थी तुम
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ऐसे हालात से मजबूर बशर देखे है
असल क्या,सूद में बिकते हुये घर देखे है
हमने देखा है वज़ादार घरानो का ज़वाल
हमने सड़को पे कई शाह ज़फर देखे है
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ग़म की दौलत मुफ्त लुटा दुं…बिल्कुल नही
अश्को मे ये दर्द बहा दूं …बिल्कुल नही
तूने तो औकात दिखा दी है अपनी
मै अपना मयार गिरा दूं…बिल्कुल नही
एक नजूमी सबको ख्वाब दिखाता है
मै भी अपना हाथ दिखा दू…बिल्कुल नही
मेरे अंदर एक खामोशी चीखती है
तो भी क्या मै भी शोर मचा दू…बिल्कुल नही
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तेरी खता नही जो तू गुस्से में आ गया
पैसे का ज़ोम था तेरे लहज़े मे आ गया
सिक्का उछाल करके तेरे पास क्या बचा
तेरा गुरुर तो मेरे काँसे मे आ गया
हर अंधेरा रोशनी मे लग गया
जिसको देखो शायरी मे लग गया
हमको मर जाने की फुरसत कब मिली
वक्त सारा जिंदगी मे लग गया
अपना मयखाना बना सकते थे हम
इतना पैसा मयकशी मे लग गया
खुद से इतनी दूर जा निकले थे हम
एक जमाना वापसी में लग गया
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शराब दौड़ रही है रगो मे,खून नही
मेरी निगाह मे,अब कोई अफलातून नही
कसम खुदा की बडे तजुर्बे से कहता हुँ
गुनाह करने मे लज्जत तो है,सुकून नही
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इतना मजबूर मत कर बात बनाने लग जाये
हम तेरे सर की कसम झूठ ही खाने लग जाये
इतने सन्नाटे पिये मेरी समात ने के अब
सिर्फ आवाज पे चाहू तो निशाने लग जाये
मै अगर अपनी जवानी के सुना दूँ किस्से
ये जो लौंडे है मेरे पांव दबाने लग जाये
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इश्क मे दान करना पड़ता है
जां को हलकान करना पड़ता है
तजुर्बा मुफ्त मे नही मिलता
पेहले नुकसान करना पड़ता है
उसकी बेलफ्ज़ गुफ्तगू के लिये
आँख को कान करना पड़ता है
फिर उदासी के भी तकाज़े है
घर को वीरान करना पड़ता है
बगैर उसको बताये निभाना पड़ता है
ये इश्क राज है,इसको छुपाना पड़ता है
मै अपने ज़ेहन की जिद बहुत परेशां हुँ
तेरे ख्याल की चौखट पे आना पड़ता है
तेरे बगैर ही अच्छे थे,क्या मुसीबत है
ये कैसा प्यार है हर दिन जताना पड़ता है