तुम ने फिर बाँहें गले में डाल दीं -JOHN ELIA

तुम ने फिर बाँहें गले में डाल दीं –इस पोस्ट में JOHN ELIA जी के द्वारा लिखी गयी कुछ शायरियाँ और गज़ल पेश की गयी है ,जो कि JOHN ELIA जी के द्वारा प्रस्तुत की गयी है।

बेदिली क्या युं ही दिन गुजर जायेगे
सिर्फ जिंदा रहे हम तो मर जायेंगे

ये खराब आतियाने, खिरद बाख्ता
सुबह होते ही सब काम पर जायेंगे

कितने दिलकश हो तुम कितना दिलजूँ हूँ मैं
क्या सितम है कि हम लोग मर जाएंगे

मेरी अक़्ल-ओ-होश की सब हालतें
तुम ने साँचे में जुनूँ के ढाल दीं
कर लिया था मैं ने अहद-ए-तर्क-ए-इश्क़
तुम ने फिर बाँहें गले में डाल दीं

शर्म ,दहशत,झिझक,परेशानी नाज से काम क्यो नही लेती
आप,वो,जी मगर ये सब क्या है तुम मेरा नाम क्यो नही लेती

हालत-ए-हाल के सबब हालत-ए-हाल ही गई
शौक़ में कुछ नहीं गया शौक़ की ज़िंदगी गई
बाद भी तेरे जान-ए-जाँ दिल में रहा अजब समाँ
याद रही तिरी यहाँ फिर तिरी याद भी गई
एक ही सानिहा तो है और वो ये कि आज तक
बात नहीं कही गई बात नहीं सुनी गई
उस के बदन को दी नुमूद हम ने सुख़न में और फिर
उस के बदन के वास्ते एक क़बा भी सी गई
सेहन-ए-ख़याल-ए-यार में की न बसर शब-ए-फ़िराक़
जब से वो चाँदना गया जब से वो चाँदनी गई
उस की उम्मीद-ए-नाज़ का हम से ये मान था कि आप
उम्र गुज़ार दीजिए,उम्र गुज़ार दी गई
उसके विसाल के लिए अपने कमाल के लिए
हालत-ए-दिल कि थी ख़राब और ख़राब की गई
उसकी गली से उठ के मैं आन पडा था अपने घर
एक गली की बात थी और गली गली गई
तेरा फ़िराक जान-ए-जान ऐश था क्या मेरे लिए
यानी तेरे फ़िराक में खूब शराब पी गई

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *