Poetry Details:-
तुम्हे हुस्न पर दस्तरस है,मोहब्बत मोहब्बत बड़ा जानते हो-इस पोस्ट मे मुशायरे मे पेश किये हुये कुछ शेर और गजले प्रस्तुत की गयी है जो Tehzeeb hafi जी ने लिखी और पेश की है।
तुम्हे हुस्न पर दस्तरस है,मोहब्बत मोहब्बत बड़ा जानते हो
तो फिर ये बताओ कि तुम उसकी आँखो के बारे में क्या जानते हो
ये जोग्राफिया,फलसफा,सायकोलोजी,साइंस रियाजी बगैरा
ये सब जानना भी अहम है ,मगर उसके घर का पता जानते हो
मेरे बस मे नही वरना कुदरत का लिखा हुआ काटता
तेरे हिस्से मे आये बुरे दिन कोई दूसरा काटता
लारियो से ज्यादा बहाव था तेरे हर इक लफ्ज मे
मै इशारा नही कट सकता तेरी बात क्या काटता
मैने भी जिंदगी और शबे हिज्र काटी है सबकी तरह
वैसे तो बेहतर तो ये था मै कम से कम कुछ नया काटता
तेरे होते हुये मोमबत्ती बुझायी किसी और ने
क्या खुशी रह गयी थी जन्मदिन की मै केक क्या काटता
कोई भी तो नही जो मेरे भूखे रहने पे नाराज हो
जेल मे तेरी तस्वीर होती तो हँस कर सजा काटता
किसे खबर है कि उम्र बस इसपे गौर करने मे कट रही है
ये उदासी हमारे जिस्मो से किस खुशी मे लिपट रही है
अजीब दुख है हम उसके होकर भी उसको छूने से डर रहे है
अजीब दुख है हमारे हिस्से की आग ओरो मे बँट रही है
मै उसको हर रोज बस यही एक झूठ सुनने को फोन करता हुं
सुनो यहा कोई मसला है तुम्हारी आवाज कट रही है
पलट के आये तो सबसे पहले तुझे मिलेंगे
उसी जगह पर जहाँ कई रास्ते मिलेंगे
अगर कभी तेरे नाम पर जंग हो गयी तो
हम ऐसे बुज़दिल भी पहली सफ में खड़े मिलेंगे
तुझे ये सड़के मेरे तबस्सुत से जानती है
तुझे हमेशा ये इशारे खुले मिलेंगे
हमें बदन और नसीब दोनो सवारने है
हम उसके माथे का प्यार लेकर गले मिलेंगे
तू जिस तरह चूम कर हमें देखता है हाफी
हम एक दिन तेरे बाजुओ मे मरे मिलेंगे
तेरा चुप रहना मेरे जेहेन मे क्या बैठ गया
इतनी आवाजे तुझे दी कि के गला बैठ गया
युं नही है के फकत मै ही उसे चाहता हुं
जो भी उस पेड़ की छांव में गया बैठ गया
इतना मीठा था वो गुस्से भरा लेहजा मत पू्छ
उसने जिस जिस को भी जाने का कहा बैठ गया
उसकी मर्जी वो जिसे पास बिठा ले अपने
इसपे क्या लडना कि फलां मेरी जगह बैठ गया
बज्मे-ए-जाना मे नशिशते नही होती मखसूस
जो भी इक बार जहाँ बैठ गया बैठ गया
ये किसने बाग से उस शख्स को बुला लिया है
परिंद उड़ गये पेड़ो ने मुँह बना लिया है
उसे पता था मै छूने मे वक्त लेता हुँ
सो उसने वस्ल का दौरानिया बढा लिया है
दरख्त छांव से हट कर भी और बहुत कुछ है
ये कैसी चीज थी और हमने काम क्या लिया है
ये कौन राह मे बैठे है मुस्कुराते है
मुसाफिरो को गलत रास्ता बताते है
तेरे लगाये हुये जख्म क्यो नही भरते
मेरे लगाये हुये पेड़ सूख जाते है
कोई तुम्हारा सफर पर गया तो पूछेंगे
रेल गुजरे तो हम हाथ क्यो हिलाते है
क्या खबर उस रोशनी मे और क्या रोशन हुआ
जब वो इन हाथो से पहली मर्तबा रोशन हुआ
वो मेरे सीने से लगकर जिसको रोई कौन था
किसके बुझने पर मै आज उसकी जगह रोशन हुआ
तेरे अपने तेरी किरणो को तरसते है यहाँ
तू ये किन गलियो मे, किन लोगो मे जा रोशन हुआ
रुक गया है या वो चल रहा है हमको सब कुछ पता चल रहा है
मेरा लिखा हुआ रायगां था,उसका काटा हुआ चल रहा है
मुझसे कल वक्त पूछा किसी ने,कह दिया के बुरा चल रहा है
उसने शादी भी की है किसी से,और गाँव मे क्या चल रहा है
सब परिंदो से प्यार लूगा मै,पेड़ का रूप धार लूंगा मै
तू निशाने पे आ भी जाये अगर,कौन सा तीर मार लूंगा मै
हम एक उम्र इसी गम मे मुब्तला रहे थे
वो सानहे ही नही थे जो पेश आ रहे थे
इसी लिये तो मेरा गाँव दौड़ मे हारा
जो भाग सकते थे बैसाखिया बना रहे थे
मै घर मे बैठ के पढता रहा सफर की दुआ
और उनके वास्ते जो मुझसे दूर जा रहे थे
वो काफिला तेरी वस्ती मे रात क्या ठहरा
हर एक को अपने पसंदीदा ख्वाव आ रहे थे
वगैर पूछे व्हाये गये थे हम दोनो
कबूल कहते हुये होठ थरथरा रहे थे