गिला करे जिन्हे तुझसे बडी उम्मीदे थी-ABBAS TABISH

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गिला करे जिन्हे तुझसे बडी उम्मीदे थी-ABBAS TABISH @ JASHN E URDU – DUBAI MUSHAIRA & KAVI SAMMELAN-इस पोस्ट में ABBAS TABISH की लिखी गयी कुछ गज़ले और शायरियाँ पेश की गयी है,जोकि ABBAS TABISH के द्वारा प्रस्तुत की गयी है।

मैने ने पूछा था कि इजहार नही हो सकता
दिल पुकारा के खबरदार नही हो सकता
जिससे पूछे तेरे बारे मे यही कहता है
खुबसूरत है वफादार नही हो सकता

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जख्म से फूल उगे, फूल से खुशबू आये
तुझसे वो बात करे जिसको ये जादू आये
तेरे होठो पे किसी ओर की बातें आयी
मेरी आँखो मे किसी ओर के आँसू आये
इतना आसां नही मल्लाह का बेटा होना
नाव डूबी तो मेरे हाथ मे चप्पू आये
चाक चेहरे मुझे अच्छे तो बहुत लगते है
इश्क मै उससे करुंगा जिसे उर्दु आये
उसने मुझमे गुल-ए-उम्मीद खिला रखा है
ताकि मुझसे ना किसी ओर की खुशबू आये

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तुम्हारी राय मे जो मोतव्वर ज्यादा है
ज्यादा क्यो नही लगता अगर ज्यादा है
ना जाने कौन सा दर्जा है ये फकीरी का
के मुझमे आदमी कम और सज़र ज्यादा है
तो मान लिजीये मै मुस्तहिक ज्यादा हुँ
तुम्हारे पास मोहब्बत अगर ज्यादा है
मै इसलिये भी वतन लौट कर नही जाता
मुझ गरीब की इज्जत इधर ज्यादा है

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दश्त मे प्यास बुझाते हुये मर जाते
हम परिंदे कहीं जाते हुये मर जाते
हम है सूखे हुये तालाब पे बैठे हुये हंस
जो ताल्लुक को निभाते हुए मर जाते
घर पहुचता है कोई ओर हमारे जैसा
हम तेरे शहर से जाते हुये मर जाते
उनके भी कत्ल का इल्जाम हमारे सर है
जो हमे ज़हर पिलाते हुये मर जाते
ये मोहब्बत की कहानी नही मरती लेकिन
लोग किरदार निभाते हुये मर जाते
हम है वो टूटी हुई कश्तियो वाले ‘ताबिश’
जो किनारो को मिलाते हुये मर जाते

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बच्चो की तरह वक्त बिताने मे लगे है
दिवारो पे हम फूल बनाने मे लगे है
धोने से भी जाती नही उस हाथ की खुशबू
हम हाथ छुड़ाकर भी छुड़ाने मे लगे है
लगता है वो ही दिन ही गुजारे है तेरे साथ
वो दिन जो तुझे अपना बनाने मे लगे है
दिवार के उस पार नही देख रहे क्या
ये लोग जो दिवार गिराने मे लगे है
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ये दोपहर है इसे मयकदे की शाम करे
मिलो के मिलके उदासी को गर्क-ए-जाम करे
कलेजा मुँह को भी आये तो ये नही मुमकिन
तू हम कलाम ना हो और हम कलाम करे
उन्हे कहो के मेरा जुर्म सिर्फ मेरा है
उन्हे कहो मेरे शजरे का एहतराम करे
तू अपना हाथ बढा,मै बढाऊ अपना हाथ
दिया दिये से जलाने का एहतमाम करे
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ज़रा सी देर में फिर उसके बाद चमकता गुबार था ही नही
ज़रा सी देर में वो शहसवार था ही नही
उन्हे कहो के बुझा कर ना इतना इतराये
चिराग पर तो मेरा इहिंसार था ही नही
गिला करे जिन्हे तुझसे बडी उम्मीदे थी
हमे तो खैर तेरा एतवार था ही नही

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