कैसे उसने ये सब कुछ मुझसे ये छुप कर बदला-Tehzeeb Hafi

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कैसे उसने ये सब कुछ मुझसे ये छुप कर बदला-इस पोस्ट मे कुछ नग्मे और शायरियाँ पेश की गयी है जो कि Tehzeeb Hafi जी के द्वारा लिखी एवं प्रस्तुत की गयी है।

कैसे उसने ये सब कुछ मुझसे ये छुप कर बदला
चेहरा बदला रस्ता बदला बाद मे घर बदला
मै उसके बारे मे ये कहता था लोगो से
मेरा नाम बदल देना वो शख्स अगर मुझसे बदला
वो भी खुश था उसने दिल देकर दिल माँगा है
मै भी खुश हुँ मैने पत्थर से पत्थर बदला
मैने कहा क्या मेरी खातिर खुद को बदलोगे?
और फिर उसने नजरे बदली और नंबर बदला


मै जिदगी मे आज पहली बार घर नही गया
मगर तमाम रात दिल से माँ का डर नही गया
बस एक दुख जो उम्रभर मेरे दिल से ना जायेगा
उसे किसी के साथ देख कर मै मर नही गया
जो मेरे साथ मोहब्बत मे हुई आदमी एक दफा सोचेगा
रात इस डर मे गुजारी हमने कोई देखेगा तो क्या सोचेगा


तुमने तो बस दिया जलाना होता है
हमने कितनी दूर से आना होता है
आँसू और दुआ मे कोई फर्क नही
रो देना भी हाथ उठाना होता है
मेरे साथ परिंदो कुछ इंसान भी है
मैने अपने घर भी जाना होता है
तुम अब उन रस्तो पर हो तहजीब
जहाँ मुड़ कर तकने पर जुर्माना होता है


खुद पर जब इश्क की वहशत को मुसल्लत करूंगा
इस कदर खाक उड़ाऊगा कयामत करूंगा
हिज्र की रात मेरी जान को आई हुई है
बच गया तो मै मोहब्बत की मजम्मत करूंगा
अब तेरे राज संम्हाले नही जाते मुझसे
मै किसी रोज अमानत मे खयानत करूंगा
लैलतुल कद्र गुजारूंगा किसी जंगल मे
नूर बरसेगा दरख्तो की इमामत करूंगा


तलिस्मे यार ये पहलू निकाल लेता है
के पत्थरो से भी खुशबू निकाल लेता है
है बेलिहाज कुछ ऐसा कि आँख लगते ही
वो सर के नीचे से बाजू निकाल लेता है
कोई गली तेरे मफरूरे दो जहाँ की तरफ
नही निकलती मगर तू निकाल लेता है
खुदा बचाये वो कज्जाक शहर मे आया
हो जेब खाली तो आँसू निकाल लेता है
अगर कभी उसे जंगल मे शाम हो जाये
तो अपनी जेब से जुगनू निकाल लेता है


मै आईनो से गुरेज करते हुये पहाड़ो की कोख मे साँस लेने वाली उदास
झीलो मे अपने चेहरे का अक्स देखू तो सोचता हुँ,कि मुझ मे ऐसा भी
क्या है मरियम?तुम्हारी बेसाख्ता मोहब्बत जमीं पे फैले हुये समंदर
की वो सतहो से मावरा है,मोहब्बतो के समंदरो मे बस एक वो हीरा-ऐ-हिज्र
है जो बुरा है मरियम,खलान गर्दो को जो सितारे मुआवजे मे मिले थे,वो
उनकी रोशनी मे सोचते है कि वक्त ही तो खुदा है मरियम,और इस ताल्लुक
की गठरियो मे,रुकी हुई साअतो से हट कर मेरे लिये और क्या है मरियम?
अभी बहोत वक्त है कि हम वक्त दे जरा एक दूसरे को मगर हम एक साथ
रहकर भी खुश ना रह सके तो माफ करना,कि मैने बचपन ही दुख की दहलीज
पर गुजारा मै उन चिरागो का दुख है जिनकी लबे शबे इंतजार मे बुझ गयी,मगर
उनसे उठने वाला धुंआ जमानो मकां मे फैला हुआ है,मै कोसारो और उनके
जिस्मो से बहने वाली उन आबशारो का दुख हुँ जिनको जमीं की गलियो पे
रेंगते रेंगते जमाने गुजर गये है, जो लोग दिल से उतर गये है ,किताबे आँखो
पे रख के सोये थे मर गये है मै उनका दुख हुँ,जो जिस्म लज्जती से उकता के
आईनो की तसल्लियो मे पले बडे है ,मै उनका दुख हुँ,मै घर से भागे हुये का
दुख हुँ,मै रात जागे हुये का दुख हुँ,मै साहिलो से बधी हुई कस्तियो का दुख हुँ,
मै लापता लड़कियो का दुख हुँ,खुली हुई खिड़कियो का दुख हुँ,मिटी हुई तख्तियो
का दुख हुँ,थके हुये बादलो का दुख हुँ,जले हुये जंगलो का दुख हुँ,जो खुल के बरसी
नही है मै उस घटा का दुख हुँ,जमीं क दुख हुँ,खुदा का दुख हुँ,बला क दुख हुँ,जो
शाख सावन मे फूटती वो शाख तुम हो,जो पींग बारिश के बाद बन बन के टूटती है
वो पींग तुम हो ,तुम्हारे होठो से सातो से समातो का सबक लिया है तुम्हारी ही
साक-ए-संदली से संदरो ने नमक लिया है,तुम्हारा मेरा मामला ही जुदा है मरियम
,तुम्हे तो सब कुछ पता है मरियम!


मेरे दिल मे ये तेरे सिवा कौन है
तू नही है तो तेरी जगह कौन है
हम मोहब्बत मे हारे हुये लोग है
और मोहब्बत मे जीता हुआ कौन है
तूने जाते हुये ये बताया नही
मै तेरा कौन हुँ,तू मेरा कौन है

इक इशारे से दीवारे दिल की दरारो मे तुने जो रोशन किये थे चिराग,उनके बुझने का दुख एक जैसा है
दोनो तरफ,आज भी याद है दूर से तेरी आवाज कानो मे पडती तो कुछ भी सुनाई ना देता,काश तु अपने
जिनाह से मुझको रिहायी ना देता,कौन बीते हुये ख्वाव पर खाक डाले ?कौन इतनी गलतफहमियो का
अजाला करे?किससे पूछे दगा और वफा मे बनाये हुये बेतकल्लुफ,ताल्लुक की उम्र अगर मुख्तसर है तो
क्यो है?कौन भूले अमावस की रातो सी जुल्फो रानाइयाँ,कौन दिल से हयादारी आँखो की यादे मिटा दे?
दोस्त किसको मफर है यहाँ बेयकीनी के फैले बला से,दोस्त कश्ती संभाली नही जा रही अब तेरे नाखुदा से
मैने तेरी रफाकत मे जितनी गुजारी मेरे साथ तेरे दिलासे की बरसात और तेरे बोले हुये लफ्ज की हर
तसल्ली हमेशा रही है,मैने तारीख रहदारियो मे कभी तेरी आँखो की किरणो की फैजगी का गिला कर लिया
नशे जान ऐसा भी क्या कर लिया?गम तो तब था कि मै तेरे जाने का गम ना करता,मेरे दिन मेरी राते तेरे
सामने है बता हाथ कब थामने है ?


बता अब्र मसाबात क्यो नही करता
हमारे गाँव मे बरसात क्यो नही करता
महाजे इश्क से कब कौन बच के निकला है
तू बच गया है तो खैरात क्यो नही करता
वो जिसकी छांव मे २५ साल गुजरे है
वो पेड मुझसे बात क्यो नही करता
मुझे तू जान से बढ़ कर अजीज हो गया है
तू मेरे साथ कोई हाथ क्यो नही करता


तू भी कब मेरे मुताबिक मुझे दुख दे पाया
किसने भरना था ये पैमाना अगर खाली था
एक दुख ये के तू मिलने नही आया मुझसे
एक दुख ये के उस दिन मेरा घर खाली था


तुम्हे हुस्न पर दस्तरस है,मोहब्बत मोहब्बत बड़ा जानते हो
तो फिर ये बताओ कि तुम उसकी आँखो के बारे में क्या जानते हो
ये जोग्राफिया,फलसफा,सायकोलोजी,साइंस रियाजी बगैरा
ये सब जानना भी अहम है ,मगर उसके घर का पता जानते हो


अब वो मिलने आये तो उसको घर ठहराना
धूप पडे उस पर तो तुम बादल बन जाना
तुमको दूर से देखते देखते गुजर रही है
मर जाना पर किसी गरीब के काम ना आना


उसके चाहने वालो का आज उसकी गली मे धरना है
यही पे रुक जाओ तो ठीक है,आगे जाके मरना है
रुह किसी को सौंप आये हो तो ये जिस्म भी ले जाओ
वैसे भी मैने इस खाली बोतल का क्या करना है


उसी जगह पर कई रास्ते मिलेंगे
पलट के आये तो सबसे पहले तुझे मिलेंगे
अगर कभी तेरे नाम पर जंग हो गयी तो
हम ऐसे बुज़दिल भी पहले सफ में खड़े मिलेंगे
तुझे ये सड़के मेरे तबस्सुत से जानती है
तुझे हमेशा ये इशारे खुले मिलेंगे
हमें बदन और नसीब दोनो सवारने है
हम उसके माथे का प्यार लेकर गले मिलेंगे


आईने आँख मे चुभते थे,बिस्तर से बदन कतराता था
इक याद बसर करती थी मुझे,मै साँस नही ले पाता था
इक शख्स के हाथ मे था सब कुछ,मेरा खिलना भी मुरझाना भी
रोता था तो रात उजड़ जाती हँसता तो दिन बन जाता था
मै रब से राबते मे रहता मुमकिन है उससे राबता हो
मुझे हाथ उठाना पड़ते थे,तब जा के वो फोन उठाता था
मुइझे आज भी याद है बचपन मे कभी उस पर अगर नजर पड़ती
मेरे बस्ते से फूल बरसते थे मेरी तख्ती पर दिल बन जाता था

 

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