कुछ इश्क़ किया कुछ काम किया-Piyush Mishra

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कुछ इश्क़ किया कुछ काम कियाइस पोस्ट में शुरु की पंक्तियाँ फैज अहमद फैज सहाब ने लिखी है और “कुछ इश्क़ किया कुछ काम किया”कविता को लिखा एवं प्रस्तुत Piyush Mishra जी ने किया है,इस कविता मे Piyush Mishra जी ने फैज अहमद फैज सहाब जी को नज्म “कुछ इश्क़ किया कुछ काम किया” को आगे बड़ाते हुये अपना नजरिया पेश किया है।

वह लोग बहुत खुशकिस्मत थे,जो इश्क़ को काम समझते थे
या काम से आशिकी करते थे,हम जीते जी मसरूफ रहे
कुछ इश्क़ किया कुछ काम किया,काम इश्क़ के आड़े आता रहा
और इश्क़ से काम उलझता रहा,फिर आखिर तंग आकर हमने
दोनों को अधूरा छोड़ दिया
[फैज़ साहब]

वो काम भला क्या काम हुआ,जिस काम का बोझा सर पे हो
वो इश्क़ भला क्या इश्क़ हुआ,जिस इश्क़ का चर्चा घर पे हो

वो काम भला क्या काम हुआ,जो मटर सरीखा हल्का हो
वो इश्क़ भला क्या इश्क़ हुआ,जिसमे न दूर तहलका हो

वो काम भला क्या काम हुआ,जिसमें न जान रगड़ती हो
वो इश्क़ भला क्या इश्क़ हुआ,जिसमें न बात बिगड़ती हो

वो काम भला क्या काम हुआ,जिसमें साला दिल रो जाए
वो इश्क़ भला क्या इश्क़ हुआ,जो आसानी से हो जाए

वो काम भला क्या काम हुआ,जो मज़ा नहीं दे व्हिस्की का
वो इश्क़ भला क्या इश्क़ हुआ,जिसमें ना मौक़ा सिसकी का

वो काम भला क्या काम हुआ,जिसकी ना शक्ल ‘इबादत’ हो
वो इश्क़ भला क्या इश्क़ हुआ,जिसकी दरकार ‘इजाज़त हो

वो काम भला क्या काम हुआ,जो कहे ‘घूम और ठग ले बे’
वो इश्क़ भला क्या इश्क़ हुआ,जो कहे ‘चूम और भग ले बे ‘

वो काम भला क्या काम हुआ,कि मज़दूरी का धोखा हो
वो इश्क़ भला क्या इश्क़ हुआ कि,जो मज़बूरी का मौक़ा हो

वो काम भला क्या काम हुआ,जिसमें ना ठसक सिकंदर की
वो इश्क़ भला क्या इश्क़ हुआ,जिसमें ना ठरक हो अंदर की

वो काम भला क्या काम हुआ,जो कड़वी घूँट सरीखा हो
वो इश्क़ भला क्या इश्क़ हुआ,जिसमें सब कुछ मीठा हो

वो काम भला क्या काम हुआ,जो लब की मुस्कान खोता हो
वो इश्क़ भला क्या इश्क़ हुआ,जो सबकी सुन के होता हो

वो काम भला क्या काम हुआ,जो ‘वातानुकूलित’ हो बस
वो इश्क़ भला क्या इश्क़ हुआ,जो ‘हांफ के कर दे चित’ बस

वो काम भला क्या काम हुआ,जिसमें ना ढेर पसीना हो
वो इश्क़ भला क्या इश्क़ हुआ,जो ना भीगा ना झीना हो

वो काम भला क्या काम हुआ,जिसमें ना लहू महकता हो
वो इश्क़ भला क्या इश्क़ हुआ,जो इक चुंबन में थकता हो

वो काम भला क्या काम हुआ,जिसमें अमरीका बाप बने
वो इश्क़ भला क्या इश्क़ हुआ,जो वियतनाम का शाप बने

वो काम भला क्या काम हुआ,जो बिन लादेन को भा जाए
वो इश्क़ भला क्या इश्क़ हुआ,जो चबा ‘मुशर्रफ़’ खा जाए

वो काम भला क्या काम हुआ,जिसमें संसद की रंगरलियाँ
वो इश्क़ भला क्या इश्क़ हुआ,जो रंग दे गोधरा की गलियाँ

वो काम भला क्या काम हुआ,जिसका सामां खुद ‘बुश’ हो ले
वो इश्क़ भला क्या इश्क़ हुआ,जो एटम-बम से खुश हो ले

वो काम भला क्या काम हुआ,जो ‘दुबई फ़ोन पे’ हो जाए
वो इश्क़ भला क्या इश्क़ हुआ,जो मुंबई आ के ‘खो’ जाए

वो काम भला क्या काम हुआ,जो ‘जिम’ के बिना अधूरा हो
वो इश्क़ भला क्या इश्क़ हुआ,जो हीरो बन के पूरा हो

वो काम भला क्या काम हुआ,की सुस्त जिंदगी हरी लगे
वो इश्क़ भला क्या इश्क़ हुआ,की ‘लेडी मैकबेथ’ परी लगे

वो काम भला क्या काम हुआ,जिसमें चीखों की आशा हो
वो इश्क़ भला क्या इश्क़ हुआ,जो मज़हब रंग और भाषा हो

वो काम भला क्या काम हुआ,जो ना अंदर की ख्वाहिश हो
वो इश्क़ भला क्या इश्क़ हुआ,जो पब्लिक की फ़रमाइश हो

वो काम भला क्या काम हुआ,जो कंप्यूटर पे खट-खट हो
वो इश्क़ भला क्या इश्क़ हुआ,जिसमें ना चिठ्ठी ना ख़त हो

वो काम भला क्या काम हुआ,जिसमें सरकार हज़ूरी हो
वो इश्क़ भला क्या इश्क़ हुआ,जिसमें ललकार ज़रूरी हो

वो काम भला क्या काम हुआ,जो नहीं अकेले दम पे हो
वो इश्क़ भला क्या इश्क़ हुआ,जो ख़त्म एक चुम्बन पे हो

वो काम भला क्या काम हुआ,की ‘हाय जकड ली ऊँगली बस’
वो इश्क़ भला का इश्क़ हुआ,की ‘हाय पकड़ ली ऊँगली बस’

वो काम भला क्या काम हुआ,की मनों उबासी मल दी हो
वो इश्क़ भला क्या इश्क़ हुआ,जिसमें जल्दी ही जल्दी हो

वो काम भला क्या काम हुआ,जो ना साला आनंद से हो
वो इश्क़ भला क्या इश्क़ हुआ,जो नहीं विवेकानंद से हो

वो काम भला क्या काम हुआ,जो चन्द्रशेखर आज़ाद ना हो
वो इश्क़ भला क्या इश्क़ हुआ,जो भगत सिंह की याद ना हो

वो काम भला क्या काम हुआ,कि पाक़ जुबां फ़रमान ना हो
वो इश्क़ भला क्या इश्क़ हुआ,जो गांधी का अरमान ना हो

वो काम भला क्या काम हुआ,कि खाद में नफ़रत बो दूँ में
वो इश्क़ भला क्या इश्क़ हुआ,कि हसरत बोले रो दूँ में

वो काम भला क्या काम हुआ,की की खट्ट तसल्ली हो जाए
वो इश्क़ भला क्या इश्क़ हुआ,कि दी ना टल्ली हो जाए

वो काम भला क्या काम हुआ,इंसान की नीयत ठंडी हो
वो इश्क़ भला क्या इश्क़ हुआ,कि जज़्बातों में मंदी हो

वो काम भला क्या काम हुआ,कि क़िस्मत यार पटक मारे
वो इश्क़ भला क्या इश्क़ हुआ,कि दिल मारे ना चटखारे

वो काम भला क्या काम हुआ,कि कहीं कोई भी तरक नहीं
वो इश्क़ भला क्या इश्क़ हुआ,कि कड़ी खीर में फ़रक नहीं

वो काम भला क्या काम हुआ,चंगेज़ खान को छोड़ दे हम
वो इश्क़ भला क्या इश्क़ हुआ,इक और बाबरी तोड़ दे हम

वो काम भला क्या काम हुआ,कि आदम बोले मैं ऊँचा
वो इश्क़ भला क्या इश्क़ हुआ,कि हव्वा के घर में सूखा

वो काम भला क्या काम हुआ,जो एक्टिंग थोड़ी झूल के हो
वो इश्क़ भला क्या इश्क़ हुआ,जो मारलॉन ब्रांडो भूल के हो

वो काम भला क्या काम हुआ,’परफार्मेंस’ अपने बाप का घर
वो इश्क़ भला क्या इश्क़ हुआ,कि मॉडल बोले में ‘एक्टर’

वो काम भला क्या काम हुआ,कि टट्टी में भी फैक्स मिले
वो इश्क़ भला क्या इश्क़ हुआ,कि भट्ठी में भी सेक्स मिले

वो काम भला क्या काम हुआ,हर एक ‘बॉब डी नीरो’ हो
वो इश्क़ भला क्या इश्क़ हुआ,कि निपट चू**या हीरो हो….

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